रतन टाटा का अंतिम संस्कार: पारसी धर्म में अंतिम संस्कार Last Rites की अनोखी परंपरा
Ratan Tata's अंतिम संस्कार Last Rites: Unique Parsee Funeral Tradition Explained
पारसी न शव को जलाते हैं, न दफनाते हैं, जानें कैसे होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार
पारसी धर्म, जो दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है, अपने विशेष धार्मिक रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। पारसी समुदाय के लोग न शव को जलाते हैं और न ही उसे दफनाते हैं। उनका अंतिम संस्कार एक अनोखे और प्राचीन पद्धति से किया जाता है, जिसे “डखमा” या “टॉवर ऑफ साइलेंस” के नाम से जाना जाता है। भारत के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा भी इसी समुदाय से आते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि रतन टाटा का अंतिम संस्कार कैसे होगा? आइए जानते हैं पारसी समुदाय के इस अनोखे अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के बारे में।
पारसी धर्म में शव के प्रति दृष्टिकोण
पारसी धर्म के अनुसार, मृत शरीर को अपवित्र माना जाता है, और यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद शरीर में बुरी ताकतें प्रवेश कर जाती हैं। इसलिए, पारसी लोग इसे जलाने या दफनाने से बचते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि इससे मिट्टी, जल और अग्नि जैसे प्राकृतिक तत्व अपवित्र हो सकते हैं। इसके बदले, पारसी समुदाय ने एक अनोखी अंतिम संस्कार प्रक्रिया विकसित की है, जिसे पर्यावरण-संरक्षण की दृष्टि से भी सराहा जाता है।
डखमा: पारसी शवदाह की पद्धति
पारसी समुदाय में शवों को एक ऊंचे स्थान पर बने टॉवर जिसे “डखमा” या “टॉवर ऑफ साइलेंस” कहते हैं, में रखा जाता है। यह टॉवर आमतौर पर जंगल या पहाड़ों में बनाया जाता है, जहां शव को खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। इस प्रक्रिया में शव को गिद्धों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। पारसी मान्यता के अनुसार, इस प्रक्रिया से प्रकृति के साथ सामंजस्य बना रहता है और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान नहीं पहुंचता।
रतन टाटा का अंतिम संस्कार: पारसी रीति-रिवाज
रतन टाटा, जो भारत के सबसे सम्मानित और प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक हैं, का संबंध पारसी समुदाय से है। रतन टाटा का अंतिम संस्कार भी पारसी परंपराओं के अनुसार ही होगा। उनका शरीर “डखमा” में रखा जाएगा, जहां गिद्ध और प्रकृति का कर्तव्य होगा कि वे इस प्रक्रिया को पूरा करें। यह पारसी धर्म की उस धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, जो पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखने पर जोर देती है।
आधुनिकता और पारसी अंतिम संस्कार पर प्रभाव
हालांकि पारसी धर्म का यह रीति-रिवाज सदियों पुराना है, लेकिन आजकल कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो रही हैं। गिद्धों की घटती संख्या के कारण, कुछ पारसी परिवार अब शव को सौर ऊर्जा से नष्ट करने वाली पद्धति का उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा, कुछ परिवार आधुनिक तरीकों जैसे कि शवदाह गृह का भी विकल्प चुन रहे हैं, जो पारंपरिक पद्धतियों के विपरीत है।
पारसी धर्म की अंतिम संस्कार प्रक्रिया पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। यह प्रक्रिया ना केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसमें प्रकृति के प्रति सम्मान भी झलकता है। रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाजों के अनुसार ही होगा, जो इस बात का प्रमाण है कि इस समुदाय ने अपनी पुरानी परंपराओं को आज तक संजोकर रखा है।