पोल्ट्री उद्योग की ज्वलन शील समस्याओं को लेकर किया जा रहा शांतिपूर्ण प्रदर्शन

पोल्ट्री एक महत्वपूर्ण कृषि उद्योग व ढेरों खूबियां वाला व्यवसाय है इसके बावजूद इस “लाइव स्टॉक व्यवसाय की ज्वलनशील समस्याओं को निरंतर नजर अंदाज किया जा रहा है. उत्पादक किसानों की कमर टूट चुकी हैं, कर्जदार है.कई पोल्ट्री किसान 1.5 वर्ष में आत्महत्याएँ कर चुके है.
10 माह से पोल्ट्री फीड प्रमुख कच्चा माल सोपामील के सर्वकालिक उच्च मूल्य एवं अनियंत्रित जमाखोरी व सट्टेबाजी चरम पर है.
सोयामील पोल्ट्री व अन्य लाइव स्टॉक सेक्टर (मछली, डेयरी, श्रिम्प)के आहार का मुख्य व आवश्यक घटक (प्रोटीन) है.इसके भाव अमूमन 30,000 रु प्रति टन होते है.वर्तमान वर्ष के शुरूआती माह (फरवरी मार्च) में सोपामील भाव बढ़ते हुए जुलाई अगस्त तक 1,00,000 रूपये प्रति टन से अधिक पहुंच गए थे. अभी हाल ही में (Oct. Nov.) फसल हार्वेस्ट हुई है.
भाव 65,000 रूपये प्रति टन से अधिक जा चुके है.अगर अभी यह डाल है तो आगे पूरा वर्ष कैसे कट पायेगा.
पोल्ट्री ब्रीडिंग स्टॉक व कॉमर्शियल पोल्ट्री पक्षियों को जमीन में जिन्दा दफन करना पड़ेगा.
पोल्ट्री किसानों को आत्महत्याएँ करनी पड़ जाएगी. देश के कृषि व्यवसाय नक्शे से पोल्ट्री उद्योग खत्म हो जायेगा.
निरंतर समस्याओं के चलते एवं सरकार द्वारा सुध नहीं लेने से मध्यमवर्गीय व छोटे पोल्ट्री उत्पादक कर्जदार व बैंक ऋण खाते NPA हो चुके है, वहीं दूसरी तरफ बैंकर्स पोल्ट्री ऋणी खातों / पोल्ट्री ऋण को गलत नजरिये से देख रहें है.
कोविड-19 महामारी व नए नए वेरिएंट का वैश्विक खतरा बना हुआ है. महामारी दौर में देश वासियों की इम्युनिटी व प्रोटीन मांग पूरा करने में पोल्ट्री प्रोडक्ट (चिकन अंडे) बहुत बड़ी भूमिका अदा कर रहे है, 73 % से अधिक नागरिकों के पोषण में की कमी है, 80% से अधिक देशवासी चिकन या अंडे का सेवन करते है, ऐसे नाजुक दौर में प्रोटीन दाता “पोल्ट्री किसान” व्यवसाय खात्मा तथा पोल्ट्री पक्षियों का उत्पादन चक्र खतरे में होना, देश का अहित है.