UPPCL Privatization Controversy: विद्युत कर्मचारियों ने Purvanchal और Dakshinanchal Discom Privatization का किया विरोध
UPPCL Privatization Controversy: Electricity Employees Protest Against Purvanchal and Dakshinanchal Discom Privatization
यूपीपीसीएल निजीकरण विवाद: लखनऊ में विद्युत कर्मचारियों का जोरदार प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन (UPPCL) के निजीकरण विवाद ने अब बड़ा रूप ले लिया है। Purvanchal और Dakshinanchal Discom Privatization के प्रस्ताव के खिलाफ विद्युत कर्मचारियों और अभियंताओं ने लखनऊ के हाइडिल फील्ड हॉस्टल में विशाल विरोध सभा का आयोजन किया। इस प्रदर्शन में सैकड़ों संविदा और स्थायी कर्मचारी शामिल हुए।
UPPCL Management Privatization Decision के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व संयोजक शैलेंद्र दुबे ने किया। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा, “हम इस निजीकरण को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे।” उनका कहना था कि Uttar Pradesh Power Corporation Privatization के नाम पर जो घाटे के आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, वे पूरी तरह से भ्रामक और झूठे हैं।
निजीकरण के विरोध में उठी आवाज
शैलेंद्र दुबे ने उदाहरण देते हुए कहा कि ओडिशा में भी विद्युत क्षेत्र का निजीकरण किया गया था, लेकिन यह असफल रहा। उन्होंने जोर देकर कहा, “Purvanchal और Dakshinanchal के विद्युत वितरण निगमों को पांच निजी कंपनियों में बांटने का निर्णय न केवल कर्मचारियों के हितों पर प्रहार है, बल्कि जनता के लिए भी नुकसानदेह है।”
UPPCL के घाटे के दावों को बताया झूठा
UPPCL Management Privatization Decision पर सवाल उठाते हुए दुबे ने कहा कि प्रबंधन द्वारा प्रस्तुत घाटे के आंकड़े झूठ का पुलिंदा हैं। पावर कॉर्पोरेशन का कहना है कि बिजली राजस्व का बकाया ₹1,15,825 करोड़ है, जिसमें Purvanchal का ₹40,962 करोड़ और Dakshinanchal का ₹24,947 करोड़ शामिल है। उन्होंने कहा कि यदि यह बकाया राजस्व वसूल लिया जाए, तो UPPCL घाटे की बजाय ₹5,825 करोड़ के मुनाफे में आ जाएगा।
क्या निजीकरण के पीछे कोई साजिश है?
प्रदर्शनकारियों का मानना है कि घाटे का झूठा प्रचार कर निजीकरण को आगे बढ़ाने की साजिश की जा रही है। दुबे ने सवाल किया कि जब बकाया राजस्व की वसूली संभव है, तो Uttar Pradesh Electricity Privatization Protest की जरूरत क्यों पड़ी?
जनता और कर्मचारियों का सवाल
प्रदर्शन में उपस्थित सभी कर्मचारियों ने UPPCL Privatization Controversy के खिलाफ एक स्वर में मांग की कि निजीकरण का यह निर्णय तुरंत वापस लिया जाए। उन्होंने कहा कि यदि कहीं अतिक्रमण की समस्या है, तो उसे सुलझाकर विकास कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
क्या यह लड़ाई खत्म होगी?
यह प्रदर्शन लखनऊ तक ही सीमित नहीं है। पूरे प्रदेश में Electricity Employees Protest Uttar Pradesh के तहत यह मुद्दा गहराता जा रहा है। कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तो आंदोलन और बड़ा रूप लेगा।
Uttar Pradesh Power Corporation Privatization के खिलाफ यह विरोध प्रदर्शन केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि जनता के अधिकारों की लड़ाई भी है। Purvanchal और Dakshinanchal Discom Privatization के इस फैसले से प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं और कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन इस विवाद को कैसे सुलझाता है।