सुरेश खन्ना का दौरा: आदेशों का शोर, कार्रवाई की चुप्पी
Suresh Khanna's Visit: Echoes of Orders, Silence on Action!
सुरेश खन्ना का दौरा: आदेशों की गूंज, लेकिन कार्रवाई की खामोशी!
लखनऊ नगर निगम के जोन- 2 में वित्त और संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना का दौरा किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं था। ऐशबाग और मालवीय नगर की गलियों में मंत्रीजी ने महापौर सुषमा खर्कवाल के साथ कदम रखा और एक बार फिर वही “फिक्स स्क्रिप्ट” सुनाई—”अगले दौरे तक सबकुछ ठीक हो जाना चाहिए।”
इस दौरे में पार्षदों ने शिकायत की कि उनके क्षेत्रों में विकास कार्य नहीं हो रहे। मंत्रीजी ने माथे पर हल्की चिंता की लकीरें खींची और अपनी प्रशासनिक ताकत का प्रदर्शन करते हुए आदेश दे डाला। लेकिन सवाल यह है कि पिछली बार जो आदेश दिए गए थे, उनका क्या हुआ? किसी ने नहीं पूछा, और शायद किसी को याद भी नहीं।
जोन- 6 और जोन – 7 के अनसुलझे किस्से
याद कीजिए, जोन- 6 के दौरे में मंत्रीजी ने भारी नाराजगी जताई थी, लेकिन नाराजगी का परिणाम शून्य रहा। जोनल अधिकारी मनोज यादव अपनी राम कहानी में अभी भी लगे है वहीं, जोन-7 के डूडा कॉलोनी में तो हालात इतने खराब थे कि मंत्रीजी को खुद डंडा उठाकर नाली साफ करनी पड़ी थी। यह नजारा प्रशासनिक व्यवस्था के लिए शर्मनाक था, लेकिन SFI सुनील वर्मा पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्या यही प्रशासनिक सख्ती है?
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कागजों तक सीमित आदेश
नगर निगम की लापरवाही पर कई बार आवाज उठाई गई, लेकिन लगता है निगम की आंखों पर विकास विरोधी पट्टी बंधी हुई है। मंत्रीजी के दौरे अब महज खानापूर्ति बनकर रह गए हैं, जहां आदेश दिए जाते हैं, गुस्सा जताया जाता है, और फिर सब कुछ अगले दौरे तक भुला दिया जाता है।
आज के दौरे में नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह, अपर आयुक्त, और अन्य अधिकारी मौजूद थे। वे केवल “उपस्थित दिखने” का औपचारिक कर्तव्य निभाते नजर आए।
लखनऊ की जनता अब इन दौरों से तंग आ चुकी है। सवाल यह है कि क्या इन दौरों का उद्देश्य वाकई समस्याएं सुलझाना है, या यह सिर्फ मीडिया में “एक्टिव प्रशासन” दिखाने का तरीका है?