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आर्टिकलधर्म

अनंत फल प्राप्ति एवं कष्टों के निवारण के लिए जाने अनंत चतुर्दशी की कथा डॉ सुमित्रा से

अनंत चतुर्दशी इस वर्ष ८ सितम्बर को अनंत फल प्राप्ति एवं कष्टों के निवारण के लिए मनाया जायेगा।

अनंत चतुर्दशी के दिन वेदग्रंथों का पाठ करके भक्ति की स्मृति का डोरा यांचा जाता है, जो भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फलदायक माना गया है। अनंत चतुर्दशी चौदह लोकों का प्रतीक है, जिसमें अनंत भगवान् विद्यमान होते हैं।ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर प्रातःकाल अनंत का पूजन करता है, वह भगवान् की कृपा से अनंत सिद्धि को पाता है। अनंत चतुर्दसी का उल्लेख हमारी पौराणिक ग्रंथो में मिलता है – अपना राजपाट जुए में हारकर जब युधिष्ठिर अपने परिवार सहित वनों में भटक रहे थे, तब उन्हें अनेक कष्टों को सहन करना पड़ा। उनको दुःखी और कष्ट में देखकर भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी। पांडवों ने जब भक्तिभाव से पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत किया, तो उनके सारे कष्ट दूर हो गए ।पौराणिक कथा: श्रीभविष्यपुराण में उल्लेख मिलता है – एक बार गंगा किनारे धर्मराज युधिष्ठिर ने जरासंध को मारने के लिए राजसूय यज्ञ प्रारंभ किया और रत्नों से सुशोभित यज्ञशाला बनवाई। अनेक मुक्ता लगाने से वह इंद्र के महल जैसी लगने लगी । यज्ञ के लिए अनेक राजाओं को न्योता दिया गया। गांधारी का पुत्र दुर्योधन यज्ञमंडप में घूमते हुए एक ऐसे सरोबर में गिर पड़ा। जहां उसे लगा कि पानी भरा हुआ है वह वहां अपने कपड़े उठाकर चलने लगा। यह नजारा देखकर भीमसेन तथा अन्य राजपुरुष हसने लगे। इस परिहास से दुर्योधन बुरी तरह चिढ़ गया और वह पांडवों से अपने इस अपमान का बदला लेने की तरकीब सोचने लगा। तब उसके जुआ खिलाकर पांडवो को हराने की युक्ति बनाई। आगे का वितान्त सब जानते ही है। पराजित हुए पांडवों को बारह वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास मिला। जहां उन्हें अनेक कष्ट सहकर दिन गुजारने पड़े। दुःख से घबराकर युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से इन सारे संकटों को दूर करने का उपाय जानना चाहा, तो उन्होंने उन्हें यह कथा सुनाई -‘सतयुग में सुमंत नाम का एक वसिष्ठगोत्रीय ब्राह्मण रहता था। उसने महर्षि भृगु की ‘दीक्षा’ नामक पुत्री के साथ विवाह किया, जिससे उच्च गुणों वाली ‘सुशीला’ नाम की लड़की हुई। कुछ समय के बाद ‘दीक्षा’ ने देह त्याग दिया। सुमंत ने सुशीला का विवाह मुनिराज कौण्डिन्य से कर दिया। जब ऋषि कौण्डिन्य सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे, तो रास्ते में रात हो गई। ऋषि कौण्डिन्य नदी किनारे संध्या-वंदन में व्यस्त हो गए। इसी बीच सुशीला ने देखा कि कुछ स्त्रिया सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता का पूजन कर रही थीं। उनसे बात करने पर उसे ज्ञात हुआ कि यह अनंत-व्रत का पूजन किया जा रहा है। उसने इसका विधि-विधान जानकर वहीं अनुष्ठान करके चौदह गांठों वाला अनंत बांह में बंधवा लिया। ऋषि कौण्डिन्य ने बाह में डोरा बंधा देखकर सुशीला से पूरी जानकारी ली। इससे वह क्रोधित होकर बंधे अनंत को तोड़कर आग में फेंक दिया। इस घोर अपमान का दुष्परिणाम यह हुआ कि उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दरिद्रता से परेशान होकर वह दुःखी रहने लगे। वह अनंत की तलाश में भटकने लगे। तब भगवान् अनंत ने उनके पश्चात्ताप से प्रभावित होकर तिरस्कार के निवारण के लिए इस अनंत चतुर्दशी का व्रत विधि-विधानानुसार चौदह वर्ष तक निरंतर करने का उपाय बताया। बताए अनुसार ऋषि कॉण्डिन्य ने वैसा ही व्रत भक्तिभाव से किया, तो उन्हें सारे कष्टों से मुक्ति मिल गई।इस प्रकार का दृष्टांत सुनकर अपने अनंत दुःखों के सागर से छुटकारा पाने के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार अनंत चतुर्दशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए और उनके सारे दुःख, दर्द, विपत्तियां एवं पाप नष्ट हो गए। व्रत के प्रभाव से उन्होंने अपना खोया हुआ राज-पाट भी पुनः प्राप्त कर लिया।अनंत चतुर्दसी के दिन इस कथा को जरूर पढ़े या सुने। जीवन में अनंत सुख सब को मिले।

Ramji Tiwari

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