उन्नाव:- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में पुरुष की भागीदारी को लेकर कार्यशाला आयोजित ।।
उन्नाव से अनुज तिवारी की रिर्पोट…
मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान में स्वयंसेवी संस्था पॉपुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल (पीएसआई) इंडिया के सहयोग से टीसीआई परियोजना के तहत “मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में पुरुष की भागीदारी” विषय पर कार्यशाला आयोजित हुई |
इस अवसर पर शहरी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के नोडल अधिकारी डा. हरिनन्दन प्रसाद ने कहा कि भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में, परिवार नियोजन को बड़े पैमाने पर महिलाओं के मुद्दे के रूप में देखा जाता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)- 4 के अनुसार, आठ में से तीन पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक साधन अपनाना महिलाओं का काम है और पुरुषों को इसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।
ऐतिहासिक रूप से भी महिलाओं द्वारा परिवार नियोजन के साधन अपनाने पर काफी जोर दिया गया है, और पुरुषों को शामिल करने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए हैं। पुरुषों की भागीदारी का निम्न स्तर एक हद तक, पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक साधनों के बहुत कम उपयोग में परिलक्षित होता है |
परिवार कल्याण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. अरविन्द कुमार ने कहा कि पुरुषों द्वारा गर्भनिरोधक साधनों की स्वीकृति कई मिथकों और गलत धारणाओं से प्रभावित है, जिसमें पौरुष की हानि भी शामिल है जबकि स्वास्थ्य और परिवार नियोजन में पुरुषों की व्यवस्थित और निरंतर भागीदारी की आवश्यकता है | परिवार नियोजन में पुरुष भागीदारी बढ़ाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा भारत के सभी राज्यों में हर साल नवंबर के महीने में नसबंदी पखवारा मनाया जाता है।
सरकार सेवा प्रदाताओं के पूल को बढ़ाने के लिए नो स्केलपेल वेसिक्टॉमी(एनएसवी) में सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण भी प्रदान कर रही है। विभाग ने अस्थायी साधन उपलब्ध कराने के लिए पाँच शहरी स्वास्थ्य केंद्रों पर परिवार नियोजन बॉक्स भी लगाए हैं |शहरी स्वास्थ्य मिशन की समन्वयक डा. रानू कटियार ने कहा कि हालांकि, लोगों को आधुनिक परिवार नियोजन के तरीकों को स्वीकार करने में समय लगा है और यही कारण है कि प्रजनन दर धीरे-धीरे कम हो गई है। साथ ही, परिवार नियोजन को अपनाने में लैंगिक विषमता भी है।
भारतीयों द्वारा अपनाए गए आधुनिक परिवार नियोजन में महिला नसबंदी का हिस्सा 75 फीसद है। इस विषमता की उत्पत्ति इस तथ्य पर है कि परिवार नियोजन पर सरकार और सामाजिक कार्यक्रमों ने बड़े पैमाने पर गर्भनिरोधक अपनाने के लिए महिलाओं पर ध्यान केंद्रित किया है |यह भी देखा गया है कि कई पुरुषों को यह गलतफहमी होती है कि अगर वे पुरुष नसबंदी करवाते हैं तो वे अपना पौरुष खो सकते हैं। यही कारण है कि एक सुरक्षित और छोटी सर्जिकल प्रक्रिया होने के बावजूद, इसकी पैठ बहुत कम रहती है |
इस मौके पर डा. आसिफ, शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की एएनएम और आशा कार्यकर्ता, पीसीआई से अनुरेश और राम कुमार तिवारी तथा सीफॉर के प्रतिनिधि मौजूद रहे |