महापौर के रंग फीके कर गए पार्षद, होली मिलन समारोह में नहीं हुए शामिल
Lucknow Municipal Politics: Holi Milan Event Highlights Growing Tensions Among Councilors!

लखनऊ। लखनऊ नगर निगम की राजनीति में तनातनी अब त्योहारों के रंगों पर भी हावी होती दिख रही है। बुधवार को महापौर सुषमा खर्कवाल के सरकारी कैंप कार्यालय में आयोजित भव्य होली मिलन समारोह में जहां शहर के गणमान्य लोग, भाजपा के वरिष्ठ नेता, नगर निगम के अधिकारी और संगठन के प्रतिनिधि शामिल हुए, वहीं नगर निगम के ज्यादातर पार्षदों की अनुपस्थिति ने इस आयोजन की रौनक को फीका कर दिया।
बीते दिनों नगर निगम की बजट बैठक में भाजपा के आठ पार्षदों की गैरमौजूदगी से उपजे विवाद ने होली मिलन समारोह में भी अपनी छाप छोड़ी। महापौर की नाराजगी और पार्टी नेतृत्व तक इस मामले की गूंज पहुंचने के बाद भी पार्षदों का यह मौन विरोध जारी रहा।
रंगों के बीच राजनीतिक खिंचाव
कार्यक्रम में भाजपा नेता अमित टंडन, एमएलसी रामचंद्र सिंह प्रधान, उपसभापति गिरीश गुप्ता, पार्षद दल के नेता सुशील तिवारी पम्मी पार्षद गीता देवी,राम नरेश, संदीप शर्मा, पियूष दीवान, पूजा जसवानी, अशोक उपाध्याय, पार्षद पति सुनील शंखधर और अरविंद यादव , सुधीर मिश्रा समेत नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। अपर नगर आयुक्त, जोनल अधिकारी, जोनल सेनेटरी अफसर और संगठन से जुड़े लोग भी महापौर के साथ इस उत्सव में शरीक हुए।
लेकिन सवाल यह उठा कि नगर निगम के वे पार्षद कहां थे, जो कुछ दिन पहले बजट बैठक से नदारद रहकर सुर्खियों में आए थे? क्या यह सिर्फ एक संयोग था, या फिर महापौर से खिंचाव का यह खुला प्रदर्शन?
होली के रंग में भंग!
महापौर सुषमा खर्कवाल ने अपने संबोधन में नगर विकास और शहर को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने पर जोर दिया। उन्होंने सभी को होली की शुभकामनाएं दीं और एकता एवं सौहार्द बनाए रखने का संदेश दिया। लेकिन कार्यक्रम के दौरान पार्षदों की गैरमौजूदगी चर्चा का प्रमुख विषय बनी रही।
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एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“त्योहार राजनीति से ऊपर होना चाहिए, लेकिन यहां तो सियासत ने गुलाल की खुशबू को भी फीका कर दिया। नगर निगम लखनऊ की राजनीति में जो दरार बजट बैठक में दिखी थी, वह अब सार्वजनिक मंच पर भी दिखने लगी है।”
अब आगे क्या?
नगर निगम के ये पार्षद बजट बैठक से गायब रहने के बाद अब होली मिलन से भी दूरी बना चुके हैं। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ नाराजगी का इशारा है, या फिर पार्टी के भीतर गहरे असंतोष की बानगी?
नगर निगम में बीते कुछ दिनों से जिस अंतर्कलह की चर्चा जोरों पर थी, वह अब खुले मंच पर आ चुकी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा नेतृत्व इस तनातनी को कैसे सुलझाता है, और नगर निगम की राजनीति में आगे कौन-से रंग बिखरते हैं।