देश के शहीदों का ये कैसा अपमान! राजस्थान में घास क्यों खा रहीं पुलवामा के शहीदों की वीरांगनाएं

भारत के रखवाले सरहद पर अपनी जान की बाज़ी लगाने वाले हमारे देश के वीर सिपाही हर समय हर हालत में अपने देश की रक्षा के लिए हमेशा अपने प्राणों की बलि देने के लिए तत्पर रहते हैं। लेकिन क्या बीतती होगी उनके परिवार पर जब उन्हें उनका हक़ देना तो दूर उनकी सुनी तक नहीं जाती। प्रशासन की ये मनमानी बेरुखी क्या हमारे देश के बलिदानियों का अपमान नहीं है। दर्द से भरी कहानी जिसे सुनकर आपका भी दिल पसीज जायेगा और मन गुस्से से भर जाएगा।
अपने बेटे, पति और भाई का इंतज़ार करने वाली माँ, पत्नी और बहन जब देखती है तिरंगे में लिपटा हुआ तो नजाने कैसे ये सब बर्दास्त कर पाती होगी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से पुलवामा में शहादत देने वाले शहीदों की तीन वीरांगनाएं धरने पर बैठी हैं। सरकार से अपनी मांगे मंगवाने के लिए 11वें दिन यानी शुक्रवार को भी जयपुर में उनका धरना जारी है। एक दिन पहले उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलने की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया। इसी दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलने की गुहार लगाई। हाथ जोड़े, मिन्नतें की, लेकिन पुलिस और प्रशासन का दिल नहीं पसीजा।

मातृभूमि के लिए सीमाओं पर जान की बाजी लगाने वालों में राजस्थान के सपूत सबसे आगे रहते हैं। वीरों के ऐसे त्याग और बलिदान पर पूरा देश नतमस्तक रहता है। वीरांगनाओं ने अपनी लाचारी और पीड़ा को दर्शाते हुए मुंह में घास दबाई। कैसे है ये दुखद तस्वीरें।खुद को गाय बताते हुए सरकार से दया करने की मार्मिक अपील की। अपनी पीड़ा और मजबूर को गाय बनकर सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की। सरकार तक वीरांगनाओं की ये तस्वीरें पहुंचीं या नहीं? लेकिन सोशल मीडिया पर मुंह में घास दबाएं कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं। लोग इन तस्वीरों को देखकर तरह – तरह के कयास लगा रहे हैं? कोई सवाल पूछ रहा है तो कोई उनकी इन तस्वीरों पर सरकार से जवाब मांग रहा है। लेकिन जो वीरांगनाओं की पीड़ा से बेखबर हैं उनके जहन में पहला सवाल यही उठ रहा है कि इनके दिल में ऐसा क्या दर्द है कि घास खाने को मजबूर हैं?

बिना किसी बात की परवाह किये बिना हर परिस्थिति में दुश्मनों का डट कर सामना करने वाले हमारे भारतीय सैनिक अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। देश के इन वीर सपूतों के बलिदान का उनके परिवार वालों पर क्या गुजरती होगी इसका अंदाज़ा भी हम नहीं लगा सकते। तीन वीरांगनाएं धरने पर बैठी हैं। शहीद जीतराम की वीरांगना, शहीद रोहिताश्व की वीरांगना और शहीद हेमराज की वीरांगना। तीनों की अपनी – अपनी मांगें हैं। शहीद जीतराम की वीरांगना चाहती है की उनके देवर को नौकरी दी जाये। शहीद रोहिताश्व की वीरांगना भी यही चाहती हैं। शहीद हेमराज की वीरांगना की ये मांग है की इनकी प्रतिमा लगाई जाये और उनके गांव
की सड़क बनवाई जाए।
पता नहीं प्रशासन इनके इस दर्द से बेख़बर है या बस नाटक कर रहा कैसे किसी को कुछ पता ही नहीं या सब जान कर भी अनजान बन रहे है। खैर कहते है ऊपर वाले के घर दे ही पर अंधेर नहीं ,भले देश की सरकार इस पर कुछ न कर रही हो लेकिन जनता की अदालत में न्याय जरूर मिलता है।