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डॉक्टर की हैंडराइटिंग क्यों होती है टेढ़ी-मेढ़ी? स्कूल में सिखाई लिखावट का क्या हुआ!

Why is Doctor's Handwriting So Messy? The Untold Story Behind the Scribbles!

डॉक्टर बने नहीं कि हैंडराइटिंग हुई गायब! स्कूली हैंडराइटिंग का सच और चिकित्सा की अजब दुनिया

आपने शायद कई बार देखा होगा कि स्कूलों में बच्चों की हैंडराइटिंग पर जोर देने के लिए टीचर कितने सख्त होते हैं। बड़े-बड़े स्कूलों से पढ़े लड़के और लड़कियों की हैंडराइटिंग एकदम सटीक और सुंदर होनी चाहिए, ताकि कागज पर लिखने के बाद हर अक्षर जैसे कला का एक नमूना लगे। परीक्षा में अच्छे नंबर पाने का मतलब सिर्फ उत्तर सही होना नहीं था, बल्कि हैंडराइटिंग भी सुंदर होनी चाहिए! हर एक टेढ़ी-मेढ़ी लाइन पर मार्क्स कटना पक्का!

लेकिन जैसे ही यही बच्चे डॉक्टर बनते हैं, उनकी हैंडराइटिंग देखते ही मरीज का दिमाग झनझना जाता है! अरे भाई, अगर डॉक्टर साहब को ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी लिखाई में ही दवा लिखनी थी, तो आखिर स्कूली दिनों में हैंडराइटिंग सुधारने की इतनी मेहनत और मार्क्स कटिंग का क्या मतलब था?

हैंडराइटिंग और डॉक्टर की अद्भुत कहानी

स्कूल की जिंदगी में पेन-पेंसिल का यह हाल था कि हर एक लाइन सीधी, हर एक ‘i’ का डॉट गोल होना चाहिए था, और हर ‘t’ की लाइन बराबर। हाथ की लिखावट के लिए खास हैंडराइटिंग क्लास तक लगवाई जाती थी। टीचर का मानना था कि जितनी सुंदर हैंडराइटिंग होगी, उतना ही छात्र का जीवन सुनहरा होगा। लेकिन जैसे ही वह एमबीबीएस की डिग्री के करीब पहुँचते हैं, उनकी हैंडराइटिंग में एक अद्भुत बदलाव आता है। यह परिवर्तन इतना गहरा होता है कि डॉक्टर की पर्ची पढ़ने के लिए कभी-कभी फार्मासिस्ट को पंडित जी बुलाना पड़ता है।

डॉक्टर बनते ही हैंडराइटिंग का रहस्य

डॉक्टर बनने के बाद जब लड़के-लड़कियां हॉस्पिटल की दुनिया में कदम रखते हैं, तो एक अजीब सा बदलाव उनकी लिखावट में आता है। ऐसा लगता है कि हैंडराइटिंग अचानक से एक सांकेतिक भाषा में बदल गई हो। इस विषय में जानने वाले कुछ अनुभवी कहते हैं कि डॉक्टरी पेशे में वक्त की कमी, हर रोज़ बढ़ती मरीजों की लाइन और थकान के कारण डॉक्टरों को एक अलग ही तरह की ‘लिखाई कला’ अपनानी पड़ती है। हर मिनट गिनती का है, और लिखावट की सुंदरता में समय व्यर्थ करना उन्हें अपनी दक्षता के खिलाफ लगता है।

स्कूलों में हैंडराइटिंग सुधारने का प्रेशर क्यूँ?

अब सवाल ये है कि आखिर स्कूलों में हैंडराइटिंग पर इतना जोर क्यों? इसका एक व्यंग्यात्मक उत्तर तो यह है कि स्कूलों को शायद यह नहीं पता कि इन छात्रों में से कई भविष्य में डॉक्टर बनने वाले हैं। स्कूल टीचर्स को लगता है कि साफ-सुथरी लिखावट से ही बच्चे पढ़ाई में अव्वल होंगे, और जिंदगी में किसी ऊँचाई पर पहुँचेंगे। लेकिन शायद डॉक्टर की हैसियत में पहुँचकर खुद छात्र भी अपनी इस पक्की मान्यता का त्याग कर देते हैं। उनके लिए पर्चियों की लिखावट बस एक औपचारिकता भर रह जाती है।

स्कूली हैंडराइटिंग और डाक्टरी हैंडराइटिंग का अंतर

डॉक्टरों की हैंडराइटिंग का ये मुद्दा इतना गहराई में बैठ चुका है कि अब इस पर चुटकुले बनने लगे हैं। जैसे कि डॉक्टर बनने की पहली शर्त है, “जितना हो सके लिखावट को अस्पष्ट बनाओ।” स्कूलों की दुनिया में हैंडराइटिंग को लेकर जितना प्रेशर होता है, डाक्टरी पेशे में उतना ही कम। शायद यह हैंडराइटिंग पर स्कूल और हॉस्पिटल की सोच का अंतर है!

तो जनाब, अगर आपके बच्चे की हैंडराइटिंग में कमी रह गई हो तो परेशान मत होइए। हो सकता है कल को वो डॉक्टर बने और उसकी ये लिखावट उसकी पहचान बन जाए।

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सूचना इंडिया न्यूज़ चैनल के अनुभवी पत्रकारों और लेखकों की पूरी टीम काम कर रही हैं, सूचना इंडिया के एडिटोरियल टीम के पास 15 वर्षों का गहन अनुभव है। राजनीति, सामाजिक मुद्दों, और अर्थव्यवस्था पर उनकी रिपोर्ट्स और लेखन शैली ने उन्हें मीडिया जगत में विशेष पहचान दिलाई है। सूचना इंडिया ने विगत 15 वर्षों में कई महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स का नेतृत्व किया है और पत्रकारिता में निष्पक्षता और नैतिकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें एक विश्वसनीय आवाज बनाया है। उन्होंने अपने काम के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं और युवा पत्रकारों को मार्गदर्शन देने में भी सक्रिय हैं।

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