एक समय था जब World Cricket में Test Cricket की पहचान खब्बू (Legends) बल्लेबाजों की धैर्यपूर्ण और मजबूत खेल शैली से होती थी। ये बल्लेबाज एक बार पिच पर जम जाते तो उन्हें वहां से हटाना विरोधी टीम के लिए बेहद कठिन होता था। उस दौर में टेस्ट क्रिकेट का एक अलग ही आकर्षण था, जहां पांच दिनों तक खेला जाने वाला मुकाबला अक्सर रोमांचक स्थिति में पहुंचता। लेकिन आज, लगभग हर टेस्ट खेलने वाले देश में खब्बू बल्लेबाजों की कमी महसूस हो रही है। अब अधिकतर टेस्ट मैच दो से तीन दिनों में ही खत्म हो जाते हैं, जबकि इन मैचों को पांच दिनों और 450 ओवर के खेल के लिए डिज़ाइन किया गया था। मैचों के परिणाम जल्दी आने लगे हैं, लेकिन खेल की इस बदलती तस्वीर में पुरानी टेस्ट क्रिकेट की भावना कहीं खोती सी नज़र आती है।
इतिहास के प्रमुख खब्बू बल्लेबाज
टेस्ट क्रिकेट में कई महान (Legends) खब्बू बल्लेबाज रहे जिन्होंने अपनी टीमों के लिए अद्वितीय योगदान दिया:
(यहाँ खब्बू बल्लेबाज से मतलब टिक कर लम्बी पारी खेलने वाले बल्लेबाजों से है)
- सुनील मनोहर गावस्कर (भारत)
- ब्रायन लारा (वेस्टइंडीज)
- गैरी सोबेर्स (वेस्टइंडीज)
- राहुल द्रविड़ (भारत)
- मैथ्यू हेडन (ऑस्ट्रेलिया)
- युनूस खान (पाकिस्तान)
- जावेद मियांदाद (पाकिस्तान)
- डेविड बून (ऑस्ट्रेलिया)
- अरविंद डिसिल्वा (श्रीलंका)
- माइक गैटिंग (इंग्लैंड)
- ग्रैहम गूच (इंग्लैंड)
- जैक कालिस (साउथ अफ्रीका)
इन बल्लेबाजों ने अपनी धैर्यपूर्ण बल्लेबाजी और मजबूत डिफेंस के साथ कई बार टीम को मुश्किल परिस्थितियों से उबारा। चाहे स्पिन फ्रेंडली पिच हो या फास्ट बॉलिंग सपोर्ट वाली, इन खब्बू बल्लेबाजों ने हर तरह की पिच पर शानदार प्रदर्शन किया। उनकी बैटिंग का फ्रंट फुट और बैक फुट गेम, शॉट सिलेक्शन, फुटवर्क, स्टांस और क्रिकेट की समझ अनुकरणीय थी। इनकी पारियों ने कई युवा खिलाड़ियों को प्रेरित किया है, और ये क्रिकेट के बुनियादी सिद्धांतों का प्रतीक बने रहे।
आज के क्रिकेट में बदलाव
आज के समय में लगभग सभी टीमों में ऐसे बल्लेबाज हैं जो तेजी से रन बनाने की क्षमता रखते हैं, लेकिन जब टीम को कठिन परिस्थितियों में पिच पर टिके रहने की आवश्यकता होती है, तब ये बल्लेबाज अक्सर असफल हो जाते हैं। आज के क्रिकेट में बल्लेबाजों का डिफेंस, शॉट सिलेक्शन, फ्रंट फुट और बैक फुट खेल और उनकी अप्रोच में वो गहराई और स्थिरता कम नज़र आती है।
अगर वर्तमान WTC IND Vs NZ 3rd टेस्ट की बात करें, तो भारत के प्रमुख बल्लेबाजों का आउट होने का तरीका उनकी अप्रोच की कमी को उजागर करता है। रोहित शर्मा, जो घरेलू सीरीज में अपने सहज खेल के लिए जाने जाते हैं, इस बार असहज नज़र आए। यशस्वी जैसवाल, हर बार अच्छे स्टार्ट के बाद अपना विकेट फेंक देते हैं, जैसे उन्हें अपने विकेट की कीमत का अंदाजा ही न हो। विराट कोहली, जिनको किंग की उपाधि से नवाज़ा जाता है, टीम की मुश्किल स्थिति में अनावश्यक रूप से रन लेते हुए आउट हो गए, जबकि ऐसी स्थिति में स्थिरता की आवश्यकता थी।
WTC Test Series IND Vs NZ: क्या विराट और रोहित के दौर का अंत आ गया है?
विश्व क्रिकेट में चुनौती
यह समस्या सिर्फ “Man in Blue” “भारतीय टीम” तक सीमित नहीं है। “World Cricket” में भी आज अधिकांश टीमें एक दिन में 300-400 रन बना लेती हैं, तो कभी अगले मैच में 100 रन पर ही सिमट जाती हैं। क्या इसे क्रिकेट की अनिश्चितता मानकर स्वीकार किया जाए, या इसे अत्यधिक T20 मैचों, IPL (आईपीएल) और BBL जैसे टूर्नामेंट्स का प्रभाव माना जाए? अत्यधिक पैसा और व्यवसायिकता का असर भी खिलाड़ियों के खेल पर दिखाई देने लगा है।
पाठकों की राय
क्रिकेट के इस बदलते रूप पर आप क्या सोचते हैं? क्या टेस्ट क्रिकेट को उसकी पुरानी पहचान लौटानी चाहिए, या यह बदलाव खेल के लिए सकारात्मक है? अपने विचार हमें कमेंट्स के माध्यम से अवश्य बताएं।