
हिंदी कविता की क्रांति लाने में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है, वो आधुनिक समय के महानतम कवियों में से एक है जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
एक हिंदी कवि, देशभक्त और संसद सदस्य, रामधारी सिंह दिनकर भारत के इतिहास में एक क्रांतिकारी कवि रहे हैं। जो एक गरीब परिवार में जन्मे, भारत के राष्ट्रकवि भारत में स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरित थे, जिसने उन्हें अपनी भावनाओं को लिखने और चित्रित करने का उत्साह दिया।
प्रारंभ में, वह क्रांतिकारी आंदोलन के समर्थन में थे, लेकिन 1920 में महात्मा गांधी से मिलने और स्वतंत्रता प्राप्त करने के उनके तरीके से प्रेरित होने के बाद वे गांधीवादी हो गए।
रामधारी सिंह दिनकर की कविता ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं को आज भी लोगों के मुह से गुनगुनाते हुए सुना जा सकता है । तो चलिए पढ़ते है उनकी ये कविता…

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं,
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना ये व्यवहार नहीं।
धरा ठिठुरती है शीत से,
आकाश में कोहरा गहरा है,
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है।
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं,
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं।
चंद मास अभी इंतज़ार करो,
निज मन में तनिक विचार करो,
नये साल नया कुछ हो तो सही,
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही।
ये धुंध कुहासा छंटने दो,
रातों का राज्य सिमटने दो,
प्रकृति का रूप निखरने दो,
फागुन का रंग बिखरने दो।
प्रकृति दुल्हन का रूप धर,
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी,
शस्य – श्यामला धरती माता,
घर -घर खुशहाली लायेगी।
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि,
नव वर्ष मनाया जायेगा।
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर,
जय-गान सुनाया जायेगा।।
रामधारी सिंह दिनकर का कविता संग्रह (Major Poetic Works)
- रेणुका (1935)
- हुंकार (1938)
- रसवन्ती (1939)
- द्वन्द्वगीत (1940)
- कुरुक्षेत्र (1946)
- धूपछाँह(1946)
- सामधेनी (1947)
- बापू (1947)
- इतिहास के आँसू (1951)
- धूप और धुआँ (1951)
- रश्मिरथी (1954)
- नीम के पत्ते (1954)
- दिल्ली (1954)
- नील कुसुम (1955)
- नये सुभाषित(1957)
- सीपी और शंख (1957)
- परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
- हारे को हरि नाम (1970)
- प्रणभंग (1929)
- सूरज का ब्याह (1955)
- कविश्री (1957)
- कोयला और कवित्व (1964)
- मृत्तितिलक (1964)
दिनकर जी को काशी नगरी प्रचारिणी सभा, उत्तर प्रदेश सरकार से सम्मान और भारत सरकार से उनके काम कुरुक्षेत्र के लिए एक पुरस्कार भी मिला था । उन्हें उनके काम ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 1959 में पद्म विभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया था। उन्हें भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा एलएलडी की डिग्री से सम्मानित किया गया था।