नगर निगम लखनऊ सदन का मौन, शहर की चीखें—महापौर से पूछता है लखनऊ
मनीष मिश्रा की विशेष रिपोर्ट

लखनऊ से सपा पार्षद यावर हुसैन “रेशू” की कलम ने उठाई अवाम की आवाज
लखनऊ।नगर निगम लखनऊ के पार्षद सैय्यद यावर हुसैन रेशू ने महापौर को एक ऐसा पत्र लिखा है, जो सिर्फ कागज़ पर नहीं, बल्कि लखनऊ की टूटी सड़कों, बजती नालियों और टपकते नलों की कराहती आवाज़ है। 2 सितम्बर 2024 से अब तक करीब 7 महीने बीत चुके हैं, लेकिन नगर निगम का सदन नहीं बुलाया गया। और अब 9 अप्रैल को पता चला कि सदन 11 अप्रैल को प्रस्तावित था— फिर अफवाह आई कि शायद अब वो भी नहीं होगा।
पार्षद रेशू के अनुसार, जनता की समस्याओं का अंबार लग चुका है—सड़कों की हालत बदतर है, सीवर उफन रहा है, कूड़ा गलियों में अटा पड़ा है, और पीने का पानी नसीब नहीं। ऐसे में जब जनता ने वोट देकर अपने नुमाइंदे भेजे, तो सदन की चुप्पी पर सवाल उठना लाज़मी है।
पत्र में रेशु ने कहा है—“जनता का काम ही नहीं होगा, तो सदन की तारीखें बढ़ाने का क्या औचित्य? क्या अब नगर निगम की बैठकों का आयोजन पंचांग देखकर तय होगा?”
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उन्होंने महापौर से आग्रह किया है कि जल्द से जल्द सदन बुलाया जाए, जिससे नगर की समस्याओं का निदान हो सके।
अब सवाल ये है कि क्या नगर निगम की चुप्पी टूटेगी? या फिर लखनऊ की जनता यूं ही ‘विकास’ की प्रतीक्षा में गलियों में भटकती रहेगी?
लखनऊ पूछ रहा है, महापौर जी—अब और कितनी देर?