महानगर का Smart Toilets: स्वच्छता की जगह बीमारी का अड्डा?
Is Mahanagar smart toilets a Public Health Risk? Swachh Bharat Abhiyan Faces Criticism
महानगर का Smart Toilets या बीमारी की फैक्ट्री: स्वच्छ भारत अभियान की उड़ी धज्जियाँ
महानगर, 20 अक्टूबर 2024 – स्वच्छ भारत अभियान के तहत शहर में स्मार्ट टॉयलेट्स की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वच्छता में सुधार करना और स्वच्छता का संदेश फैलाना था। लेकिन कुछ ही महीनों में यह स्मार्ट टॉयलेट्स बीमारी की फैक्ट्री बन गए हैं। महानगर में स्थित कई स्मार्ट टॉयलेट्स की हालत इतनी दयनीय हो गई है कि वहां गंदगी का अंबार लग गया है, और लोग इन्हें इस्तेमाल करने से कतरा रहे हैं।
गंदगी का अड्डा बना स्मार्ट टॉयलेट
स्मार्ट टॉयलेट्स के रख-रखाव में भारी लापरवाही की वजह से इनकी स्थिति बिगड़ती जा रही है। कूड़े-कचरे का सही प्रबंधन नहीं होने के कारण गंदगी फैल रही है और टॉयलेट्स में स्वच्छता की स्थिति न के बराबर है। पानी की कमी, टूटी टॉयलेट सीटें, गंदे फर्श, और बदबूदार वातावरण लोगों को वहां जाने से रोकते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह स्मार्ट टॉयलेट्स वाकई लोगों की सुविधा के लिए बनाए गए थे या बीमारी फैलाने का नया केंद्र बन रहे हैं?
बीमारियों का खतरा बढ़ा
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इन टॉयलेट्स की गंदगी और अस्वच्छता के चलते संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। गंदे पानी और साफ-सफाई की कमी के कारण डायरिया, त्वचा रोग, और अन्य संक्रमण तेजी से फैल सकते हैं। खासकर गर्मियों और मानसून के मौसम में स्थिति और भी गंभीर हो जाती है, जब टॉयलेट्स में जमा पानी और गंदगी से मच्छर और अन्य कीटाणु पैदा होते हैं।
स्वच्छ भारत अभियान की उड़ी धज्जियाँ
स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत सरकार ने देशभर में सार्वजनिक स्थानों पर Smart Toilets की स्थापना का दावा किया था, ताकि लोगों को स्वच्छता का माहौल मिल सके। लेकिन महानगर में इस योजना की असलियत कुछ और ही है। स्मार्ट टॉयलेट्स में साफ-सफाई का अभाव, रख-रखाव की कमी, और सरकारी लापरवाही ने स्वच्छता अभियान को मजाक बना दिया है। जनता द्वारा दिए गए टैक्स के पैसे से बनाए गए इन टॉयलेट्स की स्थिति देखकर साफ है कि इस योजना की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं।
जनता की नाराजगी
शहरवासियों का कहना है कि स्मार्ट टॉयलेट्स के नाम पर सिर्फ प्रचार हुआ है, जबकि असलियत में इसका लाभ किसी को नहीं मिल रहा। स्थानीय निवासी रमेश सिंह ने कहा, “टॉयलेट्स में घुसते ही इतनी बदबू आती है कि वहां रुकना मुश्किल हो जाता है। यह सरकार की नाकामी है कि वह इन टॉयलेट्स की साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दे रही है।” कई लोगों ने टॉयलेट्स के खराब हालात के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
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सरकार और प्रशासन का बयान
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वे स्मार्ट टॉयलेट्स की स्थिति की जांच कर रहे हैं और जल्द ही सभी टॉयलेट्स का मरम्मत और रख-रखाव किया जाएगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि स्वच्छता अभियान के तहत नियमित सफाई सुनिश्चित की जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है। प्रशासन का यह रवैया सवालों के घेरे में है कि आखिर क्यों इतनी बड़ी योजना का सही से पालन नहीं हो रहा।
महानगर के Smart Toilets की स्थिति स्वच्छ भारत अभियान की सच्चाई बयां करती है। जहां एक ओर सरकार स्वच्छता के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर आम जनता आज भी गंदगी और अस्वच्छता के माहौल में जीने को मजबूर है। स्मार्ट टॉयलेट्स का उद्देश्य भले ही जनता की सुविधा के लिए था, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखकर लगता है कि यह बीमारियों का घर बन गए हैं। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे जल्द से जल्द इस मुद्दे का समाधान करें और स्वच्छता अभियान को सही मायनों में लागू करें।