Welcome to Soochna India   Click to listen highlighted text! Welcome to Soochna India
धर्म

हनुमान जी की अतुलित शक्तियों का राज?

मित्रोआज मंगलवार है, आज हम आपको हनुमानजी को तत्काल प्रसन्न करने के लिये उनके बारह नामों के बारे में बतायेंगे !!!!!

  • अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
    दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
    सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
    रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥

हनुमानजी से बड़ा भगवान का दूसरा कोई भक्त नहीं है। हनुमानजी अशरण की शरण, दीनजनों के सहाय, मंगलकारी और संकटहारी हैं। भक्तों के कष्ट से व्याकुल होकर उनके दु:ख-दारिद्रय, आधि-व्याधि तथा समस्त विपत्तियों को दूर करने के लिए वे सदा तैयार रहते हैं; इसलिए जो लोग हनुमानजी के नामजप का आश्रय लेते हैं वे उनकी कृपा से निहाल हो जाते हैं।

आनन्दरामायण में दी गयी हनुमानजी के बारह नामों की स्तुति अद्भुत चमत्कारी हैं। इनका नित्य पाठ-स्मरण करने से मनुष्य कठिन-से-कठिन परिस्थितियों से ऐसे निकल जाता है जैसे गाय के खुर से बने गड्डे को लांघा हो। आवश्यकता केवल हनुमानजी और उनके नामों में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखने की है।

आनन्दरामायण में दी गयी हनुमानजी के बारह नामों की स्तुति!!!!!!

हनुमानंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोऽमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।। (आनन्दरामायण ८।१३।८-११)

हनुमानजी के बारह नाम और उनका अर्थ
इस स्तुति में दिए गए बारह नाम हनुमानजी के गुणों को दर्शाते हैं। श्रीराम और सीताजी के लिए हनुमानजी ने जो सेवाकार्य किया, उन्हीं का वर्णन इन नामों में हैं–

  1. हनुमान–इन्द्र के वज्र से जिनकी बायीं हनु (ठुड्डी) टूट गयी है, उस टूटी हुई विशेष हनु के कारण वे ‘हनुमान’ कहलाते हैं।
  2. अंजनीसूनु–कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रदोषकाल में अंजनादेवी के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ था इसलिए हनुमानजी ‘अंजनीसूनु’, ‘आंजनेय’ या ‘अंजनीसुत’ कहलाते हैं।
  3. वायुपुत्र–हनुमानजी वायुदेव के मानस औरस पुत्र हैं, इसलिए उन्हें ‘वातात्मज’, ‘पवनपुत्र’, ‘वायुनन्दन’ और ‘मारुति’ नामों से जाना जाता है।
  4. महाबल–हनुमानजी अत्यन्त बलशाली हैं। श्रीरामजी ने हनुमानजी के बल का अगस्त्यमुनि से वर्णन करते हुए कहा–’रावण और वाली के बल की कहीं तुलना नहीं है; परन्तु मेरा विचार है कि दोनों का बल भी हनुमानजी के बल की बराबरी नहीं कर सकता।’
  5. रामेष्ट–हनुमानजी भगवान श्रीरामजी के प्रिय भक्त हैं।
  6. फाल्गुनसख–फाल्गुन का अर्थ है अर्जुन और सख का अर्थ है मित्र अर्थात् अर्जुन के मित्र। महाभारतयुद्ध के समय हनुमानजी अर्जुन के रथ की ध्‍वजा पर विराजित थे। उन्‍होंने अर्जुन की सहायता की इसलिए उन्‍हें अर्जुन का मित्र कहा गया है।
  7. पिंगाक्ष–श्रीहनुमान के नेत्र थोड़ी लालिमा से युक्त पिंग (पीले) रंग के हैं।
  8. अमितविक्रम–अमित का अर्थ है बहुत अधिक और विक्रम का अर्थ है पराक्रमी। हनुमानजी ने अपने पराक्रम के बल पर ऐसे कार्य किए जिन्‍हें करना देवताओं के लिए भी कठिन था इसलिए उन्‍हें अमितविक्रम कहा गया है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में हनुमानजी ने अपने पराक्रम के विषय में स्वयं गर्जना की है–’मैं इस विशाल लंका को वानरी के बच्चे के समान छोटा समझता हूँ। समुद्र को मूत्र के समान, समस्त पृथ्वी को छोटे मिट्टी के पात्र (सकोरे) के समान तथा असंख्य सैनिकों से युक्त रावण को चींटियों के झुंड के तुल्य मानता हूँ।’
  9. उदधिक्रमण–उदधिक्रमण का अर्थ है समुद्र को लांघने (अतिक्रमण करने) वाले। मनुष्य को जीवन में हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष से भयभीत होने वाला व्यक्ति विजय से पहले ही पराजय स्वीकार कर लेता है। परन्तु प्रभु-विश्वासी मनुष्य को इन संघर्षों की लहरों पर भी आनन्द का संगीत सुनाई देता है। रामदूत हनुमान द्वारा समुद्र लांघने का कार्य हमारे मन में संघर्षों पर विजय पाने की प्रेरणाएं जगाता है।
  10. सीताशोकविनाशन–माता सीता के शोक का निवारण करने के कारण हनुमानजी को सीताशोकविनाशन कहा जाता है।
  1. लक्ष्मणप्राणदाता–जब रावण के पुत्र इंद्रजीत (मेघनाद) ने शक्ति का उपयोग कर लक्ष्‍मण को मूर्च्छित कर दिया, तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आए थे। उसी बूटी के प्रभाव से लक्ष्‍मण को होश आया था; इसलिए हनुमानजी को लक्ष्‍मणप्राणदाता भी कहा जाता है।
  2. दशग्रीवदर्पहा–दशग्रीव यानी रावण और दर्पहा यानी घमंड तोड़ने वाला। दशग्रीवदर्पहा का अर्थ है रावण का घमंड तोड़ने वाला। हनुमानजी ने लंका जाकर सीताजी का पता लगाया और रावण के पुत्र अक्षयकुमार का वधकर लंकादहन किया। इस प्रकार हनुमानजी ने कई बार रावण का घमंड तोड़ा था। इसलिए इनको दशग्रीवदर्पहा भी कहा जाता है।

हनुमानजी के बारह नामों के पाठ का फल
जब मन किसी अज्ञात भय से घबराता हो, किसी अनहोनी की आशंका हो या कोई भीषण संकट उपस्थित हो गया हो तो हनुमानजी के इन बारह नामों का प्रात:काल सोकर उठने पर या रात्रि को सोते समय अथवा यात्रा आरम्भ करते समय पाठ करना चाहिए इससे उस व्यक्ति के सारे भय दूर हो जाते हैं; क्योंकि हनुमानजी को ‘संकटमोचन’ कहा जाता है। भगवान श्रीराम ने भी संकट-समुद्र को हनुमानजी की सहायता से पार किया था।

–कलिकाल में विशेषकर युवकों व बच्चों में हनुमानजी की उपासना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि हनुमानजी बुद्धि, बल और वीर्य प्रदान कर भक्तों की रक्षा करते हैं। हनुमानजी के बारह नामों का जप उनकी उपासना का सबसे सरल रूप है।

–हनुमानजी के इन बारह नामों का जाप करते रहने से दरिद्रता और दु:खों का दहन होता है क्योंकि हनुमानजी अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता हैं।

–इन नामों के जप से समस्त अमंगलों का नाश होता है। परिवार में दीर्घकाल तक सुख-शान्ति रहती है और मनुष्य के सभी मनोरथों की पूर्ति होती है।

–मनुष्य को राजदरबार अर्थात् सरकारी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है।

–इन बारह नामों के उच्चारण करने से भूत-प्रेत पिशाच, यक्षराक्षस आदि भाग जाते हैं।

–इन नामों के स्मरण करने से मनुष्य की मानसिक दुर्बलता दूर होती है।

–हनुमानजी की नामोपासना करने से साधक में भी हनुमानजी के गुण–शूरवीरता, दक्षता, बल, धैर्य, विद्वता, नीतिज्ञान व पराक्रम आदि आ जाते हैं।

–हनुमानजी के नामजप से मनुष्य बुद्धि, बल, कीर्ति, निर्भीकता, आरोग्य और वाक्यपटुता आदि प्राप्त करता है।

–हनुमानजी भक्तों को रात-दिन कृपा का दान देते रहते हैं, उनके भय को मिटाते और क्लेशों को हर लेते हैं–नाशै रोग हरै सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत वीरा।।

–इन बारह नामों के जप से दुष्टों और वैरियों का अंत हो जाता है और मनुष्य की हर तरह से रक्षा होती है।

–हनुमानजी समस्त विघ्नों का निवारण कर आश्रितजनों का मन प्रसन्न कर देते हैं।

मंगल-मूरत मारुत-नंदन। सकल-अमंगल मूल-निकंदन।
जय सियाराम जय जय हनुमान।।

रामभक्त हनुमान को हम नाजाने कितने ही नामों से पूजते हैं। कोई उन्हें पवनपुत्र कहता है तो कोई महावीर, कोई अंजनीपुत्र बुलाता है तो कोई कपीश नाम से उनकी अराधना करता है। भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए, जिनमें से सर्वश्रेष्ठ हैं महावीर हनुमान। शिवपुराण के अनुसार त्रेतायुग में दुष्टों का संहार करने के लिए हनुमान ने शिव के वीर्य से जन्म लिया था।

शिवपुराण में हुए उल्लेख के अनुसार समुद्रमंथन के बाद देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत का बंटवारा करने के लिए विष्णु जी ने मोहिनी का आकर्षक रूप धारण किया था। मोहिनी को देखकर कामातुर शिव ने अपनी लीला रचते हुए वीर्यपात किया जिसे सप्तऋषियों ने सही समय का इंतजार करते हुए संग्रहिहित कर लिया था।

जब वक्त आया तब सप्तऋषियों ने शिव के वीर्य को वानराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से उनके गर्भ तक पहुंचाया। शिव के इसी वीर्य से अत्यंत पराक्रमी और तेजस्वी बालक हनुमान का जन्म हुआ था।

बाल्यकाल में हनुमान,,,,वाल्मिकी रामायण के अनुसार हनुमान अपने बाल्यकाल में बेहद शरारती थी। एक बार सूर्य को फल समझकर उसे खाने दौड़े तो घबराकर देवराज इन्द्र ने उनपर वार किया। इन्द्र के वार से हनुमान बेहोश हो गए, जिसे देखकर वायु देव अत्याधिक क्रोधित हो उठे। उन्होंने समस्त संसार को वायु विहीन कर दिया। चरों ओर त्राहिमाम मच गया। तब स्वयं ब्रह्मा ने आकर हनुमान को स्पर्श किया और हनुमान जीवित हो उठे। उस समय स भी देवतागण हनुमान के पास आए और उन्हें भिन्न-भिन्न वरदान दिए।

सूर्यदेव का वरदान,,,सूर्यदेव द्वारा दिए गए वरदान की वजह से ही हनुमान सर्वशक्तिमान बने। सूर्यदेव ने उन्हें अपने तेज का सौवा भाग प्रदान किया और साथ ही यह भी कहा कि जब यह बालक बड़ा हो जाएगा तब स्वयं उन्हीं के द्वारा ही शास्त्रों का ज्ञान भी दिया जाएगा। सूर्य देव ने उन्हें एक अच्छा वक्ता और अद्भुत व्यक्तित्व का स्वामी भी बनाया। सूर्यदेव ने पवनपुत्र को नौ विद्याओं का ज्ञान भी दिया था।

यमराज का वरदान,,,यमराज ने हनुमान को यह वरदान दिया था कि वह उनके दंड से मुक्त रहेंगे और साथ ही वह कभी यम के प्रकोप के भागी भी नहीं बनेंगे।

कुबेर का वरदान,,,कुबेर ने हनुमान जी को यह वरदान दिया था कि युद्ध में कुबेर की गदा भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। कुबेर ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों के प्रभाव से हनुमान को मुक्त कर दिया।

भोलेनाथ का वरदान,,,महावीर का जन्म शिव के ही वीर्य से हुआ था। महादेव ने कपीश को यह वरदान दिया कि किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु नहीं हो सकती।

विश्वकर्मा का वरदान,,,देवशिल्पी विश्वकर्मा ने हनुमान को ऐसी शक्ति प्रदान की जिसकी वजह से विश्वकर्मा द्वारा निर्मित किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु नहीं हो पाएगी, साथ ही हनुमान को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्रदान किया।

देवराज इन्द्र का वरदान,,,इन्द्र देव ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि उनका वज्र भी महावीर को चोट नहीं पहुंचा पाएगा। इन्द्र देव द्वारा ही हनुमान की हनु खंडित हुई थी, इसलिए इन्द्र ने ही उन्हें हनुमान नाम प्रदान किया।

वरुण देव का वरदान,,,वरुण देव ने हनुमान को दस लाख वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया। वरुण देव ने कहा कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने के बाद भी जल की वजह से उनकी मृत्यु नहीं होगी।

ब्रह्मा का वरदान,,,हनुमान को अचेत अवस्था से मुक्त करने वाले परमपिता ब्रह्मा ने भी हनुमान को धर्मात्मा,परमज्ञानी होने का वरदान दिया। साथ ही ब्रह्मा जी ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि वह हर प्रकार के ब्रह्मदंडों से मुक्त होंगे और अपनी इच्छानुसार गति और वेश धारण कर पाएंगे।

तपस्या में लीन मुनी,,,पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार सभी देवी-देवताओं ने हनुमान जी को अपनी शक्तियां और वरदान प्रदान किए थे, जिसके परिणामस्वरूप पवनपुत्र बेरोकटोक घूमने लगे थे। उनकी शैतानियों के कारण सभी ऋषि-मुनी परेशान हो गए थे। वे तपस्या में लीन मुनियों को भी तंग किया करते थे।

शक्तियों की याद,,,जिसकी वजह से एक बार अंगिरा और भृगुवंश के मुनियों ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि वे अपनी सभी शक्तियां और बल भूल जाएं और इसका आभास उन्हें तभी हो, जब कोई उन्हें याद दिलाए।

समुद्र लांघना,,,इस घटना के बाद हनुमान बिल्कुल सामान्य जीवन जीने लगे। उन्हें अपनी कोई भी शक्ति स्मरण नहीं थी। भगवान राम से मुलाकात के बाद जब सीता को खोजने के लिए लंका जाना था, तब समुद्र लांघने के समय स्वयं प्रभु राम ने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया था।

सीता का वरदान,,,जब सीता की खोज करते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे तब बड़ी मशक्कत करने के बाद आखिरकार उन्हें मां सीता दिखाई दीं। जब हनुमान जी ने सीता मां को अपना परिचय दिया तब सीता मां उनसे अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्हंं अमरता के साथ यह भी वरदान दिया कि वे हर युग में राम के साथ रहकर उनके भक्तों की रक्षा करेंगे।

कलयुग में हनुमान की अराधना,,,,हनुमान चालीसा की पंक्तियां “अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता” का अर्थ है कि मां देवी सीता ने महावीर को ऐसा वरदान प्राप्त हुआ जिसके अनुसार कलयुग में भी वह किसी को भी आठ सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर सकते हैं। आज भी यह माना जाता है कि जहां भी रामायण का गान होता है, हनुमान जी वहां अदृश्य रूप में उपस्थित होते हैं।

भगवान राम का वरदान,,,रावण की मृत्यु और लंका विजय करने के बाद भगवान राम ने हनुमान को यह वरदान दिया था “जब तक इस संसार में मेरी कथा प्रचलित रहेगी, तब तक आपके शरीर में भी प्राण रहेंगे और आपकी कीर्ति भी अमिट रहेगी”।
राजीव चतुर्वेदी

Show More

Soochna India

सूचना इंडिया न्यूज़ चैनल के अनुभवी पत्रकारों और लेखकों की पूरी टीम काम कर रही हैं, सूचना इंडिया के एडिटोरियल टीम के पास 15 वर्षों का गहन अनुभव है। राजनीति, सामाजिक मुद्दों, और अर्थव्यवस्था पर उनकी रिपोर्ट्स और लेखन शैली ने उन्हें मीडिया जगत में विशेष पहचान दिलाई है। सूचना इंडिया ने विगत 15 वर्षों में कई महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स का नेतृत्व किया है और पत्रकारिता में निष्पक्षता और नैतिकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें एक विश्वसनीय आवाज बनाया है। उन्होंने अपने काम के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं और युवा पत्रकारों को मार्गदर्शन देने में भी सक्रिय हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Click to listen highlighted text!