क्या आप जानते है नवाबों के शहर लखनऊ में कहां मौजूद हैं एक जैसे के 2 मकबरे!
यकीनन आप लखनऊ अनेकों बार गए होंगे, लेकिन क्या आपने वहां जुड़वा मकबरे के बारे में सुना है? अगर नहीं तो यह स्टोरी पढ़िए।
लखनऊ भारत का सबसे बड़ा और खूबसूरत शहर है, जो कई चीज़ों की वजह से फेमस है। क्योंकि ये शहर अपनी संस्कृति, खानपान और अपने प्राचीन इतिहास के लिए जाना जाता है। यकीनन आपने एक कहावत तो सुनी होगी ‘मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं’। इसलिए लोग हर साल दूर-दराज से लखनऊ जैसे शहर की संस्कृति को निहारने और कई लोग तो नवाबी खानपान का लुत्फ उठाने यहां आते हैं।
आप भी यकीनन लखनऊ कई बार गए होंगे जहां का एक से एक बढ़कर टूरिस्ट प्लेसेस मौजूद हैं। लेकिन क्या आपने लखनऊ में स्थित जुड़वा मकबरे के बारे में सुना या देखा है? जी हां,यहां हम जुड़वा बच्चे की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि एक जैसे दो मकबरे के बारे में बात कर रहे हैं।
आपको क्या लगता है क्या सच में मौजूद हैं जुड़वा मकबरे?
जी हां, इतिहास में उल्लेख मिलता है कि ये दोनों मकबरे बेगम हज़रत अली बाग के हैं। इन्हें 18वीं शताब्दी में नवाब सादत अली खान और बेगम खुर्शीद ज़ादी के लिए बनवाए गए थे। बता दें कि ये मकबरे बेगम हजरत महल पार्क के पास मौजूद है, जहां दोनों की कब्र आज भी मौजूद हैं। हालांकि, ये काफी पुराने हो गए हैं मगर दिखने में आज भी काफी आकर्षक लगते हैं।
सआदत अली लखनऊ का एक खास शासक था, जिसने लखनऊ में कई तरह की इमारतें बनवाई थीं। सआदत अली के बेटे का नाम गाजीउद्दीन हैदर और उनकी बेगम का नाम खुर्शीद जैदी था। कहा जाता है कि जब ये मकबरे अपने माता-पिता की याद में गाजीउद्दीन हैदर ने बनवाए थे।
कैसी है वास्तुकला?
जुड़वां मकबरों की संरचना इंडो-इस्लामिक शैली की एक शास्त्रीय परंपरा पेश करती है और यहां के नवाबी-युग की वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण हैं। इन मकबरे में घंटाघर और खूबसूरत गुंबद बनाया गया है, जो यकीनन आपको देखने के लिए मजबूर कर देगा। मकबरे के फर्श काले और सफेद संगमरमर से ढके हुए हैं, जो दुर्लभ है, क्योंकि देश के इस हिस्से में ये पत्थर दुर्लभ थे।
मुख्य तौर पर मकबरे में पांच मंजिल हैं, जिनमें तहखाना भी शामिल है। मकबरे के आगे की दीवारों पर शानदार प्लास्टर का काम किया गया है और इसे एक गोलार्द्ध के गुंबद से सजाया गया है, जो एक संकीर्ण नियमित ढलाई के साथ जुड़ा हुआ है।
क्या है यहां पर खास?
इसकी खासियत तो हम आपको बता ही चुके हैं, जो कैसरबाग के सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण हैं। वे अपनी जटिल वास्तुकला और उनके चारों ओर हरे-भरे बगीचे के लिए जाने जाते हैं। कहा जाता है कि 1857 के भारत विद्रोह के दौरान भारतीय सैनिकों द्वारा जुड़वा मकबरे को मजबूत किया गया था। साथ ही बताया जाता है कि 1858 में, सर हेनरी हैवलॉक के सोलह सैनिकों को मकबरे पर हमला कर दिया था। इसमें कई सैनिक शहीद हुए गए थे, जिनकी कब्र भी इस मकबरे में ही बनाई गई हैं।
कैसे पहुंचा जाएं इनको देखने?
इस मस्जिद को देखने के लिए आपको लखनऊ आना होगा। बता दें कि आप लखनऊ ट्रेन से आ सकते हैं, फ्लाइट्स से आ सकते है । अगर आप ज्यादा दूर नहीं रहते तो बस से जाना आपके लिए बहुत ही अच्छा विकल्प हैं। लखनऊ आने के बाद आपको सादात अली खान मकबरा कैसरबाग के लिए टैक्सी करनी होगी।