पुरसाडी गाँव में सांस्कृतिक विरासत बगडवाल नृत्य का किया गया आयोजन
पहाड़ के अधिकतर गांवों में समय समय पर ऐसे सांस्कृतिक और पारंपरिक कार्यक्रमो का आयोजन होता रहता है। आज भी उत्तराखंड में मान्यता है कि पहाड़ के गांवों के खेतों में अषाढ़(जून जुलाई) के महीने में रोपाई अर्थात रोपणी की जाती है। अषाढ़ के महीने की छः गते की रोपणी को लेकर आज भी पहाड़ के लोक में माना जाता है कि इस दिन रोपणी के सेरे (रोपाई के खेत) में जीतू के प्राण नौ बैणी आछरियों ने हर लिए थे। जीतू और उसके बैलों की जोडी रोपाई के खेत में हमेशा के लिए धरती में समा जाता है। पहाड़ के सैकड़ों गाँवों में हर साल जीतू बगडवाल की याद में बगडवाल नृत्य का आयोजन किया जाता है। बगडवाल नृत्य पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। जिसमें सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होता है बगडवाल की रोपणी इस दौरान रोपणी(धान रुपाई) को देखने अभूतपूर्व जनसैलाब उमड़ता है। जीतू बगड्वाल के जीवन का 6 गते अषाढ़ की रोपाई का वह दिन अपने आप में विरह-वेदना की एक मार्मिक स्मृत्ति समाये हुए है।गौरतलब है कि आज से एक हजार साल पूर्व तक प्रेम आख्यानों का युग था, जो 16वीं-17वीं सदी तक लोकजीवन में दखल देता रहा हमारा पहाड़ भी इन प्रेम प्रसंगों से अछूता नहीं है बात चाहे राजुला-मालूशाही की हो या तैड़ी तिलोगा की, इन सभी प्रेम गाथाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज की लेकिन, सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली ‘जीतू बगड्वाल’ की प्रेम गाथा को, जो आज भी लोक में जीवंत है।