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कानपुर:- मुस्लिम एसोसिएशन को एक माह के अंतराल में खाली करना होगा मुस्लिम जुब्ली गर्ल्स इंटर कॉलेज।

कानपुर से अनुज तिवारी की रिर्पोट…

यतीम बेसहारा के लिए बने सहारा एडवोकेट सुहैल ज़फर और अख्तर हुसैन अख्तर सेकेट्री।

कानपुर का हलीम कॉलेज जिस जमीन पर बना है उसकी मिलकियत के असली मालिक माटरू साहब थें। जिन्होंने गरीब बच्चो के बेहतर भविष्य के लिए साढ़े 17 एकड़ जमीन अंजुमन इस्लामिया कमेटी को दान की थी,, इसी दान की गई जमीन में हलीम कॉलेज के साथ मुस्लिम जुब्ली गर्ल्स इंटर कॉलेज व अन्य बिल्डिंगों का निर्माण करवाया गया था। अंजुमन इस्लामिया कमेटी द्वारा वक्फ की गई जमीन में बने मुस्लिम जुब्ली गर्ल्स इंटर कॉलेज की बिल्डिंग मुस्लिम एसोसिएशन को किराए पर दी गई थी जिसका किराया 1500 रुपये प्रति माह था, मुस्लिम एसोसिएशन के पदाधिकारी रहे अब्दुल हसीब व जुब्ली गर्ल्स कॉलेज के प्रिंसिपल द्वारा बिल्डिंग का इस्तेमाल बरातशाला के रूप में किया जा रहा था, साथ ही मुस्लिम एसोसिएशन के द्वारा बिल्डिंग का किराया भी नही दी जा रहा था। इस पर अंजुमन इस्लामिया कमेटी ने माननीय न्यायालय में मुस्लिम एसोसिएशन के खिलाफ वर्ष 2002 में किराएदारी का एक वाद दाखिल किया। तमाम तारीखों के बाद अंजुमन इस्लामिया कमेटी के वकील अनवर कमाल ने अपनी जिरह में स्वीकार किया है कि संस्था के पास कई स्कूल की इमारतें है जिसमें स्कूल संचालित होते हैं। मकान नम्बर 105/591 में उसके पास स्कूल हेतु काफी बड़ी जगह है जिसमें गर्ल्स डिग्री कालेज खोलना चाहते हैं अभी वह निर्माणाधीन है। किराये वाली जगह पर कभी बारात व शादी के लिए नहीं दी जाती है कक्षा 6 से 12 तक की कक्षायें संचालित होती है और लगभग तीन हजार बालिकायें शिक्षा प्राप्त कर रही है। बच्चों के पढ़ने के सम्बन्ध में अभी तक संस्था ने कोई रिकार्ड कोर्ट में दाखिल नहीं किया है। पत्रावली पर प्रतिवादीगण की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य दाखिल नहीं किया है जिससे यह साबित हो सके कि वर्तमान में प्रतिवादीगण की किरायेदारी वाले भाग का प्रयोग ग्लर्स कालेज के लिए किया जा रहा हो और उसमें बालिकायें शिक्षा प्राप्त कर रही हो इसके विपरीत वादी की ओर से जो साक्ष्य दाखिल हुआ है, उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि किरायेदारी वाले भाग का प्रयोग गर्ल्स कालेज के रूप में नहीं हो रहा है अपितु बारातशाला व अन्य उददेश्य के लिए प्रयोग किया जा रहा है वादी अपना वाद साबित करने में सफल रहा है। अतः वाद आदेशित होने योग्य है।जिस पर माननीय न्यायालय द्वारा आदेशित किया गया किवादी का वाद विरुद्ध प्रतिवादी आदेशित किया जाता है।प्रतिवादीगण को आदेशित किया जाता है कि वे वादग्रस्त किरायेदारी वाले हिस्से को खाली करके उसका भौतिक कब्जा निर्णय के एक माह के अन्दर बादी को सौंप दें। ऐसा न करने पर वादी न्यायालय की प्रक्रिया कर कब्जे का अधिकारी होगा।

Anuj Tiwari

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