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महफूज़ जेल में कभी हत्या तो कभी जान पर हमला,फिर सुरक्षित कहा..?

जेल प्रशाशन की लगातार हो किरकिरी..!!

जेलों का मकसद कैदियों को सुधारना, मगर जेल प्रशासन के उदासीन रवैए के चलते यह मकसद कहीं हाशिये पर..!!

जेलों में क्षमता से बहुत अधिक कैदी,जेल का स्टाफ कम,कैसे हो सुरक्षा,सरकार को करना चाहिए मंथन..!!

जेल में जब लोग सुरक्षित नही हैं तो फिर कहा सुरक्षित हैं लोगो को सोचने पर विवश किया जा रहा हैं!कहते हैं की अपराधी जब पुलिस से अपनी जान बचाना चाहता हैं तो वो जेल को महफूज समझ कर जेल चला जाता हैं लेकिन वो उसी महफूज़ जेल में कभी हत्या तो कभी जान पर बनी आती हैं!

कुख्यात अपराधियों को आमतौर पर जेलों की सुरक्षित मानी जानी वाली कोठारियों में रखा और उन पर लगातार नजर रखी जाती है ताकि व जेल के अंदर किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों को अंजाम न देने पाएं उनके दुश्मन उन पर हमला न कर दें!मगर पिछले कुछ समय से ऐसा लगता है कि देश की सबसे सुरक्षित और चाकचौबंद मानी जाने वाली तिहाड़ जेल में इस तकाजे को भुला दिया गया है!वरना पिछले कुछ दिनों में दो हत्याएं न हो जातीं!

पिछले महीने एक खूंखार अपराधी की उसके दुश्मन गिरोह के बदमाशों ने धारदार लोहे से हत्या कर दी!अब टिल्लू ताजपुरिया नाम के बदमाश को उसके दुश्मन गिरोह के बदमाशों ने लोहे की सरिया घोंप कर मार डाला!ये बदमाश एक ही जेल में बंद थे,टिल्लू पर दो साल पहले रोहिणी अदालत में जज के सामने दो अभियुक्तों की हत्या कराने का आरोप था उस पर करीब चालीस हत्या और दूसरे संगीन अपराधों के मामले दर्ज थे ऐसे में जेल प्रशासन इस बात से अनजान नहीं माना जा सकता कि उसे टिल्लू पर हमले की आशंका न रही होगी!ऐसा भी नहीं कि उन्हें उसके विरोधी खेमे के बारे में जानकारी नहीं रही होगी!

जेलों में कैदियों को उपलब्ध कराए जाने वाले सामान को लेकर खासे कड़े नियम-कायदे हैं! उन्हें ऐसे कपड़े तक उपलब्ध नहीं कराए जाते जिनका इस्तेमाल व किसी को मारने में कर सकते हैं उनसे मिलने जाने वालों की कड़ी जांच की जाती है बंद कमरों की खिड़की से देखने और फोन पर बातचीत करने दिया जाता है जहां उन्हें रखा जाता है वहां विशेष सावधानी रखी जाती है कि ऐसी कोई वस्तु न हो जिसका व हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकें फिर सवाल है कि कैसे उन्नीस दिन पहले धारदार इस्पात से एक बदमाश को मार डाला गया और अब लोहे की सरिया कैसे उपलब्ध हो गई जिससे टिल्लू को मार डाला गया!

फिर दो दुश्मन गुटों के बदमाशों को अलग जेलों में रखने पर विचार क्यों नहीं किया गया! जेल प्रशासन अपने बचाव में कई तर्क दे सकता है मगर सुरक्षा में हुई इस चूक से एक बार फिर उसकी किरकिरी हुई है! जेलों में मोबाइल फोन पहुंच जाने और बदमाशों के वहीं से संगठित अपराध संचालित करने के भी कई उदाहरण हैं!जबकि आजकल जगह-जगह कैमरे लगे होते हैं और कैदियों पर कड़ी नजर रखी जाती है जेलों का मकसद कैदियों को सुधारना होता है मगर जेल प्रशासन के उदासीन रवैए के चलते यह मकसद कहीं हाशिये पर चला जाता है!

फिर कैदियों पर उचित निगरानी न रखी जा पाने की एक वजह यह भी है कि जेलों में क्षमता से बहुत अधिक कैदियों को रखा जाता है!संख्या अधिक होने के चलते विरोधी गुटों के खूंखार अपराधियों को अलग-अलग जेलों के बजाय एक ही जेल में अलग कोठरियों में रखना पड़ता है!ताजा घटना में भी यही हुआ अनेक मौकों पर रेखांकित किया जा चुका है कि जेलों में भीड़भाड़ कम रखी जाए इसके लिए विचाराधीन कैदियों की जमानत अर्जी पर त्वरित फैसला हो!

मगर इस दिशा में गति नहीं आ पाई है!जेलों में जंग की स्थिति बनने का कारण जेल प्रशासन की लापरवाही के साथ-साथ उन पर कैदियों का बोझ कम करने के मामले में शिथिलता भी है! यह स्थिति केवल तिहाड़ की नहीं देश की प्रायः सभी जेलों की है! जेलों की दशा में सुधार को लेकर गंभीरता से विचार की जरूरत है।

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